गीता पढ़ने वालों को चौथे स्कन्ध के 34वें श्लोक के बारे में सोचना चाहिए
- जयगुरुदेव नाम में पावर कब तक रहेगी
- प्रार्थना करने से क्या होता है
उज्जैन (म.प्र.) । अपने दिव्य सतसंग के माध्यम से सभी वर्गों के लोगों की सभी तरह की समस्या तकलीफों के कारण और उपाय बता समझा देने वाले, घर परिवार में सुख शांति लाने वाले, आत्म कल्याण के लिए अनमोल दौलत नामदान देने वाले, जीवों की भलाई में परमार्थ के काम में गुरु के मिशन को पूरा करने में अनवरत लगे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 सितंबर 2022 दोपहर वलसाड़ (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज ने जयगुरुदेव नाम जगाया।
जयगुरुदेव नाम कब तक चलेगा
जयगुरुदेव नाम को जब लोग बदनाम करने लग जाएंगे, इससे स्वार्थ सिद्ध करने लग जाएंगे, ऐसा समय आएगा कि लोग इसको पंथ बना लेंगे, जिससे लोग कमाने खाने लग जाएंगे तब इसका भी असर कम हो जाएगा। धीरे-धीरे कम होगा फिर खत्म हो जाएगा। फिर जो आएगा वो कोई दूसरा नाम जगाएगा। अभी तो यह आपके-हमारे रहते नाम रहेगा, एक आध पुश्त तक और भी रह सकता है, यह तो उस मालिक की मर्जी के ऊपर है। तो समझो यह जयगुरुदेव नाम भगवान का, प्रभु का नाम है। और इनमें (आये हुए भक्तगण) से काफी लोग ऐसे बैठे हैं जिनको बताया गया जयगुरुदेव नाम की ध्वनि सुबह शाम बोलो और बोलने लगे तो उनके घर का झगड़ा-झंझट खत्म हो गया।
गीता पढ़ने वालों को सोचना चाहिए
कृष्ण केवल महापुरुष ही थे। वो पार नहीं कर सकते थे जीवों को, साफ-साफ उन्होंने कहा था। किससे? पांडवों से। जब पांडवों ने कहा आप अपने साथ हमको लेते चलिए तब बोले हम तुमको नहीं ले जा सकते। समरथ गुरु की तलाश करनी पड़ेगी, उनसे रास्ता लेना पड़ेगा, भजन करना पड़ेगा, योग साधना करनी पड़ेगी तब तुम धाम जा सकते हो। ये चीज गीता पढ़ने वालों को सोचना चाहिए। गीता के चौथे स्कंध के 34वें श्लोक में लिखा हुआ है की आत्मा के उद्धार के लिए समर्थ गुरु की खोज करनी पड़ेगी। कृष्ण उनको अपने साथ नहीं ले गए थे।
प्रार्थना करने से क्या होता है
महाराज जी ने 2 सितंबर 2022 सांय सूरत (गुजरात) में दिये गये संदेश में बताया कि प्रार्थना सब लोगों को याद होना चाहिए। प्रार्थना करने से क्या होता है? वह (प्रभु) ऊपर से देखते हैं और दया करते हैं। मेहर की नजर करो मेरी ओर, दया की नजर करो मेरी ओर - ये प्रार्थना की जाती है जब, पापी ह्रदय पिघल कर आंखों से निकल आया, इन आंसुओं की माला लो भेंट है तुम्हारी। जब आंखों से आंसू गिरते हैं तो वह देखते हैं कि दुखी है, अब इसकी मदद कर देनी चाहिए। बच्चा जब रोता है आंख से आंसू निकलता है तब मां कितना भी जरूरी काम कर रही हो लेकिन उठ करके जाती है आंसू पोंछती है चुप कराती है उसकी इच्छा जो दूध पीने की या कुछ खाने पीने की होती है वो खिलाती पिलाती है। लेकिन जब तक रोओगे नहीं तब तक वो कैसे रीझेगा? हंसि हंसि कंत न पाइए, जिन पाया तिनि रोइ। यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि किसी तरह आपको समझ में आए।
सतलोक का भोजन अमृत है
महाराज जी ने 18 अप्रैल 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिये गये संदेश में बताया कि ये शरीर का भोजन धान गेहूं मेवा मिष्ठान आदि है। जब यह पांच तत्वों का शरीर छूटता है जब 17 तत्वों के लिंग शरीर जिसमें देवी-देवता रहते हैं उसमें उनका भोजन सुगंधी है। और अंदर में एक शरीर है, एक लोक है- सूक्ष्म लोक। उसमें जो रहते हैं उनका भोजन रोशनी है नूर है प्रकाश है। और कारण लोक भी है। कारण लोक में शब्द का आहार है और जब यह सतलोक पहुंचती है तो अमृत का आहार मिलता है इसको, अमृत पीती है।
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