वक्त के पूरे समर्थ सन्त ही शरीर से जीवात्मा को निकालकर प्रभु सतपुरुष तक हैं पहुँचाते
- जीवों को नर्क चौरासी, जन्म-मरण की असहनीय पीड़ा से बचाने के लिए सतपुरुष सन्तों को धरती पर भेजा करते हैं
धरती पर चलते-फिरते जीते-जागते मनुष्य शरीर में मौजूद वक़्त के सन्त सतगुरु से ज्यादा आस्था जड़ फोटो, पत्थर, मंदिर, जमीन में रखने वाले, टेकी, लकीर के फ़क़ीर, तोते की तरह केवल शब्दों को रटने-दोहराने वाले और 'वक़्त के सतगुरु' का अर्थ जानबूझ कर नजर अंदाज कर गुरु की बात काटने वाले मनमुखी भक्तों को भी अपनाने वाले, समझाते-समझाते न थकने वाले, वक़्त के समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 7 जून 2022 को सूरत (गुजरात) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि इस भारत भूमि पर हमेशा महापुरुष रहे हैं।
धर्म की बेल पूरे विश्व में धर्म परायण भारत देश से है फैली
यह धर्म परायण देश है। धर्म की बेल यहीं से बढ़ी है। पूरे विश्व में धर्म यहीं से फैला है। कुछ देशों में तो भारत से भी खराब हालत है। वहां तो आदमी को जहां मिल गया खा लिया, सो लिया, भोग कर लिया। यहां तो भारतीय संस्कृति है। मैं घूमा हूं, देखा हूं विदेशों में। अगर भारतीय संस्कृति लाने वाले लोग न पहुंचते तो एकदम जानवरों जैसी जिंदगी लोग जीते।
भारत की धर्म धरती पर अवतारी शक्तियों और सन्तों का हुआ अवतरण
भारत में सन्त महात्मा महापुरुषों का अवतरण हुआ है। जब-जब जरूरत पड़ी तब-तब उसने उसी तरह की शक्ति दे करके भेजा। राम-कृष्ण, महावीर, परशुराम, बुद्ध आदि तरह-तरह के लोग आये। सन्त कबीर पलटू नानक जगजीवन दास राधास्वामी शिव दयाल महाराज जी आए। गुरु महाराज, उनके गुरु महाराज दादा गुरु महाराज जैसे सन्त इस धरती पर पैदा हुए। जब ये पैदा होते, आते हैं तो कोई जमीन फाड़कर, आसमान चीरकर नहीं पैदा होते। यह भी मां के पेट से ही पैदा होते हैं लेकिन इनके संस्कार अच्छे होते हैं ।
संस्कार किसको कहते हैं ?
जैसे आप सतसंगी हो, शाकाहारी हो। आप अपने बच्चों को सिखाते हो कि शाकाहारी रहो, प्रार्थना करो, नाम ध्वनि बोलो, ध्यान, भजन करो, सब सिखाते हो। उससे संस्कार बनता है। ऐसे ही ऊपर से भी जीवों का संस्कार बनता है। ऊपर से भेजे जीव उस समय के गुरु सन्त के पास पहुँच जाते हैं।
पाप कम होने पर बैठ कर व बढ़ने पर घूम-घूम कर प्रचार, संभाल करते हैं
सन्त हमेशा इस धरती पर रहते हैं। जब अत्याचार पापाचार बहुत बढ़ जाता है तब घूम-घूम कर प्रचार करते, लोगों को बताते, समझाते, खानपान चाल-चलन विचार भावना को सही रखने का उपदेश करते हैं। जब शांति रहती है समय पर जाड़ा गर्मी बरसात होती है, मां बेटे का कर्तव्य, पति-पत्नी का कर्तव्य एक-दूसरे का समझते हैं, माता-पिता का फर्ज अदा करते हैं, अपने-अपने तौर तरीके से ही सही भगवान के भजन के लिए लोग थोड़ा समय निकालते हैं, परमात्मा को याद करते हैं ऐसे समय में एक जगह पर रुक करके संभाल करते रहते हैं। वक्त के मौजूदा गुरु को यह काम करना रहता है।
वक्त के पूरे समर्थ सन्त ही शरीर से जीवात्मा को निकालकर प्रभु सतपुरुष तक हैं पहुँचाते
दोनों आंखों के बीच में जीवात्मा बैठी है। वही इस शरीर को चलाती है। सन्त इसे शरीर से निकाल कर के ऊपर उस प्रभु के पास ले जाते हैं। जब वहां पहुंच जाती है तो अपनी पावर, ताकत में आ जाती है। फिर वह आदेश करते हैं, जाओ तुम अब जीवों का काम करो, उन्हें जगाओ। जीवों को रास्ता बता कर के हमारे पास पहुंचाओ। इस काम के लिए सतपुरुष सन्तों को भेजा करते हैं।
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