नवरात्रा में नींबू पानी के सही व्रत से घुटने का दर्द, ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी बहुत सी बीमारियां होती है ख़त्म
- सन्त उमाकान्त जी ने बताये नवरात्रा का नियम और गुंजाईश
- व्रत से कमजोर हुआ मन साधना में सुरत का साथ देता और ये शब्द को पकड़कर ऊपरी लोकों में जाने लगती है
गाजियाबाद (उ.प्र.)। बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 26 सितंबर 2022 प्रातः गाज़ियाबाद में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में नवरात्रा का नियम बताया। महात्माओ ने क्या नियम बनाया? अगर तबीयत खराब रहती हो तो नींबू पानी लगातार लो। जब दवा न थी तब रोग तकलीफ न आवे इसके लिए लोग साल में दो बार आने वाली नवरात्रा करते, नींबू पानी पीते थे, जिससे बदन बिल्कुल हल्का हो जाता था। नियम पालन से बहुतों का घुटने का दर्द, ब्लड प्रेशर शुगर आदि सही हो गया।
यदि आपका शरीर बहुत कमजोर है, बहुत बुड्ढे हो, चल फिर नहीं सकते हो, दवा खानी पड़ती है, अंग्रेजी दवा खाते हो, (व्रत) हो नहीं सकता हो उनकी बात तो अलग है लेकिन जिनके शरीर में बल है, चल फिर लेते हो, हल्की-फुल्की तकलीफ जैसे पेट खराब, जुखाम आदि आ जाती है, उसको दूर करने के लिए उपवास करना ही चाहिए। आँतड़ियों में मल जमा हो जाता है। टेढ़ी-मेढ़ी है। कुछ भी खाओ और दवा भी खाओ तो वो सीधे मल को निकालता ही रहता है लेकिन उनको (जमी चिकनाई) नहीं निकाल पाता इसलिए पेट को खाली होना चाहिए। नींबू खारा होता है। उसकी सफाई तो ठीक तरह से तभी होगी जब पेट खाली रहेगा।
यदि पूरा व्रत सही से न हो पाए तो गुंजाइश
जिसका नहीं चलता है तो दोनों टाइम जो भोजन खाते हो, खाने के लिए जीते हो उसको कम कर दो। एक चीज, उबला हुआ थोड़ा- आलू लौकी तरोई जो जल्दी हजम होने वाली चीज को खालो, पेट को थोड़ा खाली रखो। अब भी मन नहीं मानता है तो हल्की खिचड़ी दलिया एक टाइम खालो। इससे हो जाएगी सफाई। जब पेट हल्का होता है तो चाहे जो भी काम हो उसमें मन लगता है चाहे मजदूरी नौकरी व्यापार खेती भजन में मन लगता है। गुरु महाराज कहते थे कि रात को भजन में नींद आलस्य न आवे, एक रोटी का भूख रखकर के खाओ। गुरु महाराज जी ने तो बहुत छूट दिया। पहले के महात्माओं ने कहा एक टाइम खाओ। एक आहारी सदा व्रतधारी, एक नारी सदा ब्रह्मचारी।
व्रत से मन कमजोर हो जाता है
नवरात्रि नौ दिनों की क्यों होती है? यह जो परमात्मा की अंश जीवात्मा सुरत के दुश्मन रजोगुण तमोगुण सतोगुण है उनको नष्ट करने के लिए क्योंकि तीनों की डोरी ऊपर बंधी है और देवता नहीं चाहते कि जीव ऊपर निकल जाए (तो पाप पुण्य के बंधन में बांधे रखते हैं)। तीन दिन में जब हल्का शरीर रहता है, ताकत में कमी आ जाती है तो मन नहीं कहता कुछ करो, सुस्त कमजोर पड़ जाता है क्योंकि यही मन सब कुछ करता है। आंख के पास बैठकर देखने, जीभ पर बैठकर स्वाद लेने, नभ्या का स्वाद, कान से सुनने का काम मन ही सब कुछ करता है तो व्रत से मन कमजोर हो जाता है।
नवरात्रि में उपवास करने वालों का मन भजन में ज्यादा लगता है
तीन दिन में तमोगुण फिर तीन दिन बाद रजो गुण खत्म होता है। फिर एकदम से कमजोर शरीर हो जाता है, चाहे रोग से ही हो फिर भगवान को याद करता है। कहा है-
दीन गरीबी मांग तेरे भले की कहूं
कहा है सतगुरु से दीनता गरीबी मांगना चाहिए जिससे दुनिया की इच्छाएं खत्म हो जाए। तो सतोगुण भी खत्म होता है। जो सतसंगी नवरात्रा में उपवास करते हैं उनका मन भजन में ज्यादा लगता है। दुनियादार यदि इसी को अपना लेंगे तो वे जिनको भगवान मान लेंगे उसको याद करेंगे। तो नौ दिन में तीनों चीजें खत्म और शरीर की बाहरी इंद्रियों पर बैठ के रस लेने वाला मन हो जाता है कमजोर। सुरत को जब शब्द के साथ जोड़ते हैं तब मन उसका साथ दे देता है और इस पिंड (शरीर) से निकल करके सुरत अंड ब्रह्मांड लोक में शब्द को पकड़ करके जाने लगती है।
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