वट सावित्री व्रत कथा


मद्र देश में एक समय अश्वपति नामक राजा का शासन था। राजा बड़ा दयालु एवं धार्मिक था। किन्तु उसके कोई संतान न थी। ज्योतिषियों के परामर्श से संतान प्राप्ति के लिए उसने यज्ञ किया। उस यज्ञ के बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई। उसका नाम सावित्री रखा। विवाह योग्य आयु में सावित्री सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना लीं। नारद जी को जब यह बात पता चला तो उन्होंने सावित्री के पिता से कहे- कि सत्यवान अल्पायु हैं। अतः सावित्री को कोई दूसरा वर चुनना चाहिए। 

पिता ने सावित्री को समझाने का प्रयत्न किया, किंतु सावित्री अपने जिद पर अड़ी रही और बोली, हिंदू स्त्रियां दुनिया भर में केवल एक ही बार किसी पुरुष को चुनती हैं, बार-बार नहीं। सावित्री की जिद पर आश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। सत्यवान अपने अंधे माता पिता के साथ में रहते थे। उनके पिता का नाम द्युमत्सेन सेन था‌ उनका राज्य छिन चुका था। सावित्री भी उनके साथ रहने लगी और अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी। 

नारद जी द्वारा बताया गया सत्यवान के मरण का समय जब आने लगा तो सावित्री उपवास करना आरंभ कर दी। जिस दिन उसके पति के मरण का समय आया, उस दिन सावित्री ने व्रत रखा। सत्यवान जब लकड़ी काटने के लिए जाने लगे तो सावित्री साथ ही गई। जंगल में सत्यवान के सिर में पीड़ा होने लगी तो सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए। थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक यमदूतों ‌के साथ यमराज आ पहुंचे और सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।

सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी। उसको आता देख यमराज ने कहा कि हे पतिव्रता नारी ! पृथ्वी पर ही पत्नी पति का साथ देती है। वहां तक तुमने साथ दिया है। आप वापस लौट जाओ।

इस पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति रहेंगे, मुझे उनके साथ ही रहना है। यही मेरा पति धर्म है। यमराज सावित्री के इस उत्तर से प्रसन्न हो गए और उसने सावित्री से वर मांगने को कहा। सावित्री ने अपने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी। 

यमराज ने सावित्री के सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान कर दी और कहा सावित्री तुम्हें लौटना चाहिए। लेकिन सावित्री नहीं मानी और पीछे-पीछे चलती रही। सावित्री को आता देखकर यमराज ने उसे दूसरा वर मांगने के लिए कहा, सावित्री ने ससुर का खोया हुआ राज्य मांगा। यमराज ने सावित्री के ससुर को खोया हुआ राज्य दे दिया, और सावित्री को पुनः लौटने के लिए कहा। 

लेकिन, सावित्री अपने पतिधर्म को निभाने के लिए यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। सावित्री की पति भक्ति को देखकर यमराज ने एक बार और वर मांगने के लिए कहा‌ तब सावित्री ने कहा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। इतना सुनते ही यमराज ने सावित्री को उसके पति सत्यवान को वापस लौटा दिया। 

सावित्री अब उसी वटवृक्ष के पास वापस लौट जहां पर सत्यवान को लेकर बैठी थी। इस प्रकार सावित्री ने अपने ससुर को नेत्र ज्योति, उनका राज्य और अपने पति को प्राप्त कर ली। आपको बता दें कि वट सावित्री व्रत कथा श्रवण करने से सौभाग्यवती महिलाओं का सौभाग्य सुरक्षित रहता है, तथा उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.